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बिजूका / तरुण भटनागर

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साथी का यक़ीन था
कि
निष्प्राण है गोल मटका चेहरा
किसी ने बताया
 बेहद आश्वस्ति के साथ
कि
सिर्फ कालिख हैं
डराती आँखें
हाथों पर हाथ रख
आँखों से घूरते आँख
मित्र ने बताया
कि जो भय है
वह सिर्फ
बांस पर लिपटा भुस है
हमेशा याद था
की हम पंछी थे
पंख थे
आकाश था
उड़ान थी
इस तरह तय था
इन सब बातों का पता चल जाना।