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आज़ादी का एक 'पल्लु' / सुब्रह्मण्यम भारती

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आओ नाचें और पल्लु<ref>वह लोकगीत, जो शोषित ’पल्ल जाति के लोग गाते हैं।</ref> गाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ
आओ नाचें और पल्लु गाएँ ।

वे दिन अब दूर हुए जब ब्राह्मण मालिक कहलाता
जब गोरी चमड़ी वाला कोई बनता था हमारा आका
जब झुकना पड़ता था हमको उन नीचों के आगे
धोखे से गुलाम बनाकर हम पर जो गोली दागे

आओ नाचें और पल्लु गाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ
आओ नाचें और पल्लु गाएँ ।

आज़ादी ली है हमने, बात हमारे हक़ की
अब हम सभी बराबर हैं, यह बात हो गई पक्की
विजयघोष का शंख बजाकर चलो, विश्व को बतलाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ

आओ नाचें और पल्लु गाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ
आओ नाचें और पल्लु गाएँ ।

बहा पसीना तन का अपने, जो खेतों में मरता
उठा हथौड़ा, कर मज़दूरी, उद्योगों में खटता
उसकी जय-जयकार करेंगे, हम उस पर सब कुछ वारें
जो हराम की खाता है, उसको हम धिक्कारें
नहीं झुकेंगे, नहीं सहेंगे, शोषण को मार भगाएँ

आओ नाचें और पल्लु गाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ
आओ नाचें और पल्लु गाएँ ।

अब यह धरती हमारी ही है, हम ही इसके स्वामी
इस पर काम करेंगे हम सब, हम हैं इसके हामी
अब न दास बनेंगे हम, न दबना, न सहना
जल-थल-नभ का स्वामी है जो, उसके होकर रहना
केवल उसको मानेंगे हम, उसको ही अपनाएँ

आओ नाचें और पल्लु गाएँ
आज़ादी ले ली है हमने, इसकी ख़ुशी मनाएँ
आओ नाचें और पल्लु गाएँ ।


मूल तमिल से अनुवाद (कृष्णा की सहायता से): अनिल जनविजय

शब्दार्थ
<references/>