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तेरी याद मेरा गीत / मोहन अम्बर

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हर क्षण मेरी सांस समय के कोलाहल में दब जाती है,
इतने दुख पर भी लिखता हूँ तेरी याद बहुत आती है।
रात-रात भर स्वप्निल सुख में दिन भर का दुख घुल जाता है,
किन्तु सुबह आँखें खुलते ही सारा सपना धुल जाता है,

कई अभाव द्वार पर आकर ऐसी सांकल बजवाते हैं,
मेरी पीड़ा ख़ुद मुझसे ही दो पल बोल नहीं पाती है,
इतने दुख पर भी लिखता हूँ तेरी याद बहुत आती है,
धूप जलाती रहती मुझको छाया वाले पेड़ कंटीले,

कंठासन पर बैठी-बैठी प्यास किया करती दृग गीले,
ऐसी उमर जगत को देकर आधी उमर किसे बेचूं मैं?
इस चिन्तन-चिन्तन में मेरी बाक़ी उमर कटी जाती है,
इतने दुख पर भी लिखता हूँ तेरी याद बहुत आती है।

मेरा प्रणय एक अभिनय है यह आरोप लगा मत मुझ पर,
मेरे सच पर आँच धरेगी धुआँ उड़ेगा ही तुझ पर
तन मेरा दुनियाँ ने बाँधा पर तूने तो मन बाँधा है,
तू ही धीरज तोड़ रही है इस कारण बोझिल छाती है,

इतने दुख पर भी लिखता हूँ तेरी याद बहुत आती है,
कर्म-करों से निभाना मुश्किल फिर भी यह माला जपना है,
सौ-सौ जनम नहीं बिसरूँगा तू मेरा ऐसा सपना है,

योगी नहीं, नहीं भोगी मैं हूँ धरती का सिर्फ़ आदमी,
विरहानल पीकर, जीकर भी, थोड़ी आँख छलक जाती है,
इतने दुख पर भी लिखता हूँ तेरी याद बहुत आती है।