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श्रमिक का सांध्य / मोहन अम्बर

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सूरज डूब रहा केसरिया सूरज डूब रहा है।
श्वेत मेघ हो गया तथागत का गेरूआ दुशाला,
जिसने पर्वत के माथे पर चन्दन तिलक निकाला,
चिड़ियों के भूखे बच्चे रोते हैं तो लगता है,
जैसे थकी-थकी किरणों ने अपना दर्द कहा है,
सूरज डूब रहा है।
पश्चिम क्षितिज कोर लगती ज्यों धूनी जली किसी की,
पूरब क्षितिज कोर लगती है सूनी गली किसी की,
ऐसे में भी धूल उड़ाते लोट रहे हैं ग्वाले,
उनकी चंचलता पर मोहित होकर मलय बहा है,
सूरज डूब रहा है।
दुनियाँ कहती रात सर्जन की दुश्मन बन कर आती,
पर मुझको मालूम कि श्रम के कितने पाँव दबाती,
इसके लिए गवाही देगा मेरा गीत थकन का,
क्योंकि श्रमिक हूँ मेरा दुखड़ा इसने सदा सहा है,
सूरज डूब रहा है।