भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ सकारे / कुमार शिव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 22 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार शिव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNavgee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ सकारे
अस्त, सूर्य के साथ हुए हम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !

ऐसे बिछुड़े
पुनर्मिलन फिर सम्भव कभी
नहीं हो पाया
यादों के जंगल में
किए रतजगे
कोई भोर न आया

नदी किनारे
लहरें देखीं, नयन हुए नम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !

कितने दिन बीते
जब हम पर
हरसिंगार के फूल झरे थे
बारिश में भीगे थे
बाँहों में हमने
 कचनार भरे थे

आँसू खारे
ढूँढ़ रहे हैं अपना उदगम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !