भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुहकै छै कोयल रानी / कुमार संभव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 26 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गाछोॅ के ठारी-ठारी पर
कुहकै छै कोयल रानी।
किसिम-किसिम के फूलोॅ सें गमगम
बगिया में झूला डाल सखी,
वसंत जानी के एैतेॅ प्रीतम
लानी के राखोॅ वरमाल सखी,
होतै सेज वसंती सखी रे,
मन भर करबै मनमानी।
गाछी के ठारी-ठारी पर, कूहकै छै कोयल रानी।
काम-कमान नांकी तनलोॅ छै देखोॅ
हमरोॅ ई दूनोॅ काजल भरलोॅ आँख,
उड़ी-उड़ी जैतियै पास पिया के
होतियै जौं हमरा पंक्षी रं पाँख,
अंग-अंग में भरलोॅ अनंग छै
सद्दोखिन करै वसंत छेड़खानी,
गाछी के ठारी-ठारी पर, कूहकै छै कोयल रानी।
नया-नया पत्ता के नरम बिछौना
चलतै केकरो नै जादू-टोना,
बड़का गुणी ओझा छै हमरे पिया
सुन्दर मनमोहन रूप सलोना।
मंजर बिछलोॅ छै हुनके स्वागत में
कागा सगुन उचरानी
गाछी के ठारी-ठारी पर, कुहकै छै कोयल रानी।