फागुन छेकां, फागुन हम्में / कुमार संभव
फागुन छेकां, फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
फूल-फूल में पैसलोॅ हम्में
ठार-ठार नितराबौं हम्में,
जहाँ तहाँ बस हम्मीं छेकां
खेत खेत बौराबौं हम्में।
हर घर हर डगरोॅ में हम्में
धरा धाम पर इठलाबै छी,
मधुमय संगीत सुनाबै छी,
मस्त मगन मनभावन हम्में
फागुन छेकां, फागुन हम्में,
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
हवा वसंती के गीतोॅ में
धर्म सभ्यता के रीतोॅ में,
गोरी के पायल रुनझुन में
सुर साज बजै जे नर्तण में,
अधर हास गोरी के हम्में
माय ठोरोॅ के लोरी हम्में,
सौरी घर किलकारी हम्में
किसन हाथ पिचकारी हम्में,
राधा के मनमोहन हम्में
फागुन छेकां, फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
कली-कली में जे पराग छै
हमरे ही सब अंश भाग छै,
हमरे ही महिमा छै सगरो
जग में जत्तै आग-राग छै,
तीसी फूलोॅ के मस्ती में
हम्मीं छी सबके हस्ती में,
हवा साथ इतराबौं हम्में
फुनगी फुनगी नाचौं हम्में,
मटर खेत रखवाली हम्में
जौ, गेहूँ के बाली हम्में,
अरहर के स्वादोॅ में हम्में
रसमय मधु केतारी हम्में,
मालपुआ रसमोहन हम्में
फागुन छेकां फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
बाग-बगीचा में घूमोॅं हम्में
डारी-डारी में झूमाैंं हम्में,
रस लोभी भौंरा हम्मीं छेकां
कली-कली के मुख चूमौं हम्में,
रस भरलोॅ आमोॅ के मंजर
हमरै सें होय छै तरबतर,
बूढ़ो, बुतरू, रोगी जवान सब
हमरे रंग में होय छै सरबसर,
सबके मन रोॅ रस रंजन हम्में
फागुन छेकां फागुन हम्में।
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
ऋतु श्रेष्ठ ऋतुराज हम्में,
सबकेॅ मन रोॅ ताज हम्में,
घूँघट में गोरी के हँसबोॅ
प्रेमी मन के राज हम्में
महिना में मधुमास हम्में,
आकुल हिय उच्छवास हम्में
साँसोॅ पर जे डोलै गोरी
ऊ विरहिन के आस हम्में,
दुलहन आँखी के अंजन हम्में
फागुन छेकां फागुन हम्में
घरोॅ घरोॅ के पाहुन हम्में।
पपीहा के पी-पी में हम्में
कोयल के कू-कू में हम्में,
हवा के हू-हू में हम्में
फूच्ची के चू-चू में हम्में,
रंग वसंती हमरै से छै
संग वसंती हमरै से छै,
सुख-दुख सब हम्मीं छेकां
विरह-मिलन हमरै में छै,
मन मयूर वृंदावन हम्में
फागुन छेकंा, फागुन हम्में
घरोॅ घरोॅ के पाहुन हम्में।
दुखिया के दुख भंजन हम्में
त्रेता के रघुनन्दन हम्में,
डाल कदम्ब पर मुरली फूकौं
बज्रवासी नंदनंदन हम्में,
अस्त्र-शस्त्र के झंकारोॅ में
धनुष वाण के हर टंकारोॅ में,
युद्धरत वीर के हुंकारोॅ में
कृष्णोॅ के चक्र सुदर्शन हम्में
फागुन छेकां फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
विदुर प्रेम के भाग हम्में
किसन भोग के साग हम्में,
महारास के वंशी धुन रोॅ
प्रेमी मन अनुराग हम्में,
संगीत सुरोॅ के साज हम्में,
जन-मन के आवाज़ हम्में
सब जन हुअै एक्के जैसनौं
वैसनों चाहौं राज हम्में,
हर दिल मन के धड़कन हम्में
फागुन छेकां फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
अमरेन्दर के 'गेना' हम्मीं
'ऋतुरंग' के विरही हम्मीं,
'ऋतुराग' अनिरुद्ध विमल के
'साँवरी' दुख में कानौं हम्मीं,
चन्द्रप्रकाश के 'ऋतुरुप' में
सुमन सूरो के 'पनसोखा' में,
रस वसंत के रूप अनोखा
खोजै छी पन्ना-पन्ना में,
'ऋतुविलास' संभव के हम्में
फागुन छेकां, फागुन हम्में
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।
सांत्वना के 'बारहमासा' निरखोॅ
दर्शन दूबे के 'ऋतुमाला' परखोॅ,
'ऋतुरास' रस राहुल से सीखोॅ
कवि मुकेश के 'ऋतु वैभव' देखोॅ
किंकर कविŸा 'ऋतु सुरभि' सोहै
अंग-अंगिका जग जन मन मोहै
माधवी के 'ऋतु माधुरी' में भी हम्में
सहज सरल जग तारन हम्में।
फागुन छेकां, फागुन हम्में,
घरोॅ-घरोॅ के पाहुन हम्में।