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बैशाख तनियो नै सुहाबै छै / कुमार संभव
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सखी, बैशाख तनियो नै सुहाबै छै
ई बैसाखोॅ के देह तपै छै अपन्है
भीषण तापोॅ से व्याकुल डोलै छै,
यें छहारम की करतौ हमरोॅ सखि
समझै में नै आवै ई ग्रीष्म की बोलै छै?
सखि, बैशाख रिरियाबै छै,
सखी, बैशाख तनियो नै सुहाबै छै।
तहियो शीतल वितान तानी चाँदनी
बैठली छै प्रीतम ग्रीष्म के आसरा में,
कि दिन भर के थकलोॅ, हफसलोॅ
रात भर सुस्तैतोॅ चांदनी के अंचरा में,
सखी बैशाख सहज सुस्तावै छै
सखी, बैशाख तनियो नै सुहाबै छै।
खोपा बान्ही, तारा के गजरा सजैंने
गोड़ोॅ में पायल के रुनझुन बजैनें,
चन्दन लेपोॅ सें देह सुगंधित करनें
चलली चांदनी पिया मिलन पग भरनें
सखी, तापोॅ में भी बैशाखें प्रीत जगाबै छै,
सखी, बैशाख तनियो नै सुहाबै छै।