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झमझम करनें वरषा ऐलेॅ / कुमार संभव

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धन्य प्रेम पावस के रसभरलोॅ
घास-दुभड़ी तक छेलै जे जरलोॅ,
कंठ कृषक के जे छेलै सुखलोॅ
सबके रोम-रोम हरियैलेॅ,
झमझम करनें वरषा एैलेॅ।

पायल प्रेम सबद रस घोलै
दादुर हकरै, रहसै जी खोलै,
झिंगुर शोर मचाबै, झुनझुन बोलै
चमचम बिजली चमकी गेलै,
झमझम करनें वरषा एैलेॅ।

उमड़ी घुमड़ी घेरि घहरै मेघ
बून गिरै ते लागै गिरै नेग,
सच्चे टूटलै आय ग्रीष्म के टेग
कृषक किशोरी के जी हरसैलै,
झमझम करनें बरषा एैलेॅ।

झमकी-झमकी झोॅर परै छै
रिमझिम-रिमझिम बून्द गिरै छै,
झरझर गाछी सें बून्द झरै छै
धरती के कण-कण पनियैलेॅ,
झमझम करनें वरषा एैलेॅ।