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वरषा एैलैॅ हे पिया / कुमार संभव
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वरषा एैलेॅ हे पिया, वरषा एैलैॅ हे
भरलेॅ नदी कछार पिया, वरषा एैलैॅ हे।
उगतें किरिण आवेॅ होॅर उठावोॅ
पानी के बान्होॅ-घेरोॅ, बैल केॅ खिलावोॅ,
कंधा कुदाल लैकेॅ, खेत में चलावोॅ
फारोॅ में धार दैकेॅ, मन भर पिजाबोॅ।
मेघ गरजलै हे पिया, मेघ गरजलै हे,
वरषा एैलेॅ हे पिया, वरषा एैलैॅ हे।
अदरा के बुनलोॅ कुमुद, कतरनी
बीचड़ा में दूरै से, गमगम गमकै,
सनफन बढ़लै सीता, सोनम
हवा ज़ोर सें लहरै-छहरै, छमकै,
रोपा एैलै हे पिया, रोपा एैलै हे।
वरषा एैलेॅ हे पिया, वरषा एैलैॅ हे।
बिजली चमकै, ठनका ठनकै
कादा खेतोॅ में किसानोॅ बमकै,
रोपा के सपना लेनें रोपनिया
आरी-आरी छहकै, लचकै,
सरगद अंगिया भींजलै हे पिया, अंगिया भींजलै हे,
वरषा एैलेॅ हे पिया, वरषा एैलैॅ हे।