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दुभाषिया / अरविन्द श्रीवास्तव

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अपने महान उदेश्य व कृत्यों में
महान था वह
लेकिन वह कभी महान नहीं बन पाया था
इतिहास में

ये बातें आमजनों से राष्ट्राध्यक्षों तक खलती थी
उनकी मध्यस्थता से ही
धरती सुरक्षित बन पायी थी
कई -कई संविदायें, समझौते सम्पन्न हुए थे
उनकी देखरेख में
उन्होंने कई-कई कुटिल मुस्कानों का भी
किया था अनुवाद
बड़ी बारीकी से
बगैर लाग लपेट के ताउम्र
अपनी गुमनामी का जीवन जीते हुए भी
उन्होंने अमर कर दिया था
कई राजनीतिज्ञ और प्रधानों को
दिलया था मेडल और कराया था पुरस्कृत
जैसे कई-कई स्तूप, स्मारक और दस्तावेज
बोलने को थे उतारू
दुभाषियों की बदौलत

हमारी संज्ञान में दुभाषिया नहीं थे
दुभाषिया की संज्ञान में पूरी दुनिया थी !