भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कन्धे बैठी रात पूस की / अमरनाथ श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 28 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कन्धे बैठी
रात पूस की
घुटने-घुटने
जल होता है
धोबी देख रहा है दीपक
आगे राजमहल होता है

ठकुरसुहाती
और चुटकुलों से
दरबाद
भरा रहता है
दीमक की
कुरसी उसको
जो दस्तावेज़
खरा रहता है
प्यादे से चालें वज़ीर की
नक़ली खेल असल होता है