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कन्धे बैठी रात पूस की / अमरनाथ श्रीवास्तव
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कन्धे बैठी
रात पूस की
घुटने-घुटने
जल होता है
धोबी देख रहा है दीपक
आगे राजमहल होता है
ठकुरसुहाती
और चुटकुलों से
दरबाद
भरा रहता है
दीमक की
कुरसी उसको
जो दस्तावेज़
खरा रहता है
प्यादे से चालें वज़ीर की
नक़ली खेल असल होता है