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लपकी कनियाँ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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टप्पर में बैठली छै कनियाँ
गाड़ी पीछु दोड़ली छै झुनियाँ

हाथों में खनकै कंगना छै
आगू में ही बैठलोॅ मंगना छै

मंगना मुँहे भरलोॅ छै पान
कनियाँ नै, लानलै छियै चान

गाड़ी पीछू दौड़े सब बुतरू
बैलोॅ केॅ टिटकारै छै मटरू

लाल गोड़ शोभै छै मंगना
लपकी कनियाँ उतरोॅ ऐंगना

नथिया नाकोॅ में चमकै छै
पायल गोड़ोॅ में झमकै छै

बुतरू सब मिली केॅ गाबै छै
हाँसी बोली ख़ूब चिढ़ाबै छै

कनियाँ मनियाँ झींगा के झोर
कनियाँ माय केॅ लै गेल चोर।