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अच्छा लागै छै (कविता) / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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सूरज उगवोॅ के साथें जगवोॅ अच्छा लागै छै
सुबह सबेरे धूपोॅ में पढ़वोॅ अच्छा लागै छै
दादा-दादी, माय-बाबू घर में सबसें बड़ोॅ छै
हुनका गोड़ोॅ के छूवोॅ हमरा अच्छा लागै छै
समय रोॅ क़ीमत पहचानोॅ, फेरू ई घुरियो नै आवै
साथ समय के स्कूल जैबोॅ, अच्छा लागै छै
गुरु कहाँ भगवानोॅ से कम, हुनि ज्ञान रो खान
गुरु के आदर में शीश झुकैवोॅ, अच्छा लागै छै
छै ज़रूरी कम नै तनियो ई खेल-कूद भी,
खेलेॅ-कूदेॅ में आगू रहबोॅ, अच्छा लागै छै।