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गाछ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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कथी लेॅ मारै छै गाछी में ढेला
देखै कŸो गिरलै आम टिकोला
एकरेॅ छाया में बैठी सुस्तावै छैं
उलटे ढेलोॅ से आम झड़ावै छैं
साथ टिकोला कŸोॅ पŸाा गिरलोॅ छै
अबतक आदमी की बातोॅ मानलोॅ छै
नूनू तोंय तेॅ पढ़ै लिखै छै समझें
गाछे हमरोॅ प्राण तोंय ते बूझें
एकरें छाहुर पावै प्राण आदमी
तहियो गाछी के काटै छै आदमी
गाछ बचावोॅ, प्राण बचावोॅ जग रोॅ
यहेॅ पुकार छै सुग्गा मैना सब रोॅ