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मुझे पता नहीं / देव प्रकाश चौधरी

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उसने कहा
एक कलाकार से
खूब खिलते हैं तुम्हारे रंग
लेकिन सारे कैनवास मत रंग लेना
कुछ बचा रह जाए तो बेहतर।

उसने कहा
एक नदी से दौड़ती हांफती जाती हो
पूरी तरह समुद्र में मत मिल जाना
कुछ बूंदें रह जाएँ तो बेहतर।

उसने कहा
एक चिड़िया से
बहुत ऊंचा उड़ती हो
फिर अपने घर भी लौट आती हो
कभी किसी दिन पूरा आकाश मत माप लेना
कुछ कोना बचा रह जाए तो बेहतर।

उसने कहा
एक तितली से
इस फूल से उस फूल पर मंडराती रहती हो
सारे पराग अपने साथ मत लेकर जाना
कुछ बचा रह जाए तो बेहतर।

उसने कहा एक झिंगुर से
सारी रात मत गूंजते रहना
एक पहर भी रह जाए सन्नाटा तो बेहतर।
कलाकार नदी, चिड़िया, तितली और झिंगुर ने क्या कहा मुझे पता नहीं।