भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देख सखी रे भेलै भोर / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देख सखी रे भेलै भोर ।
नाचै मन मयूरा मोर ।
रात सखी रे प्रीत जगावै ।
आस मिलन के रीत सिखावै ।
सावन-भादो अँखियन लोर ।
देख सखी रे भेलै भोर ।
मन हर्षावै जियरा जरावै ।
रही-रही अचरा के कोना उड़ावै ।
पूरबा-पछिया मारै हिलोर ।
देख सखी रे भेलै भोर ।
आपनो पांव पखारै सावन ।
धर ऐंगना के बुहारै सावन ।
गीत खुशी के गावै सावन ।
टुक-टुक राह निहारै सावन ।
जेना चाँद चकोर ।
देख सखी रे भेलै भोर।
हरा रंग के ओढ़ी चुनरया ।
छम-छम नाचै लागै बहुरिया ।
कजरा-गजरा रंग-बिरंग ।
लाल-गुलाबी ठोर ।
देख सखी रे भेलै भोर ।
रिमझिम-रिमझिम बदरा देखी ।
लाज-शरम सब देलयै फेकी ।
बरसै पानी हथिया-कानी ।
सूना लागै हमरो जवानी ।
झपसी करै छै झीका-झोर ।
देख सखी रे भेलै भोर ।