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सखी, सावन के बरसै फुहार / मुकेश कुमार यादव

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सखी, सावन के बरसै फुहार।
नयन ज़रा तरसै हमार।

काली रे बदरया रात अनरया।
चुवै छपरया भीगै चुनरया।
घूमै छी ऐंगना द्वार।
तिरछी नजरया पतली कमरया।
लचकै बीच बाज़ार।

पापी पपीहरा पीहू–पीहू गावै।
कोयलो के कूहू-कूहू मन नञ् भावै।
याद आवै छै बलमा के प्यार।

गद-गद झरिया।
बहै लोटा थरिया।
कहै छियो सखी तोरा।
हमरे किरिया।
लागै छै बलमा कचनार।