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रिमझिम सावन ऐलै रे / मुकेश कुमार यादव

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रिमझिम सावन ऐलै रे।
सबके मन के भैलै रे।
रंग-बिरंग तितली।
चमचम चमकै, बीजली।
ताल-तलैया-नदी-तालाब।
सागर बनी समैलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।
जल-तरंग धरती-सरंग।
कीट-पतंग बादल संग।
झलकै रंग सुन्दर अंग।
इन्द्रधनुष चली ऐलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।
सुग्गा-मैना शोर करै।
मोर नाची, भोर करै।
पुरबा-पछिया ज़ोर करै।
हमरो मन हिलोर करै।
कही-कही शरमैलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।
यमुना तीरे धीरे-धीरे।
बंसी बजाय कृष्ण सखी रे।
राधा नाचै।
कृष्ण-मुरारी, गोपियन के भुलैलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।
सावन रात सुहानो लागै।
पहर रात बिहानो लागै।
टिम-टिम तारा चाँद सितारा।
सबरो प्यारा ध्रुव तारा।
केतना प्यारा छै नजारा।
ऐंगना हमारो स्वर्ग।
धरती पर उतरी ऐलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे
भोरे-भोर गरजै मेघ।
केकरा कहै छै? केकरो भेद?
फिसिर-फिसिर पानी टपकै।
मन-मयूर-महुआ गमकै।
गांव के गोरी छम-छम छमकै।
बिंदिया चुड़ी कंगना खनकै।
घर-द्वार ऐंगना चमकै।
चंचल मन बहकैले रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।
सावन केरो झड़ी।
लागै मुश्किल घड़ी।
रहै घरै पड़ी।
बोलै बड़ी-बड़ी।
स्कूल काँलेज पढ़ी।
गीत ख़ुशी रो गैलै रे।
रिमझिम सावन ऐलै रे।