भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओस गिरै आंगन / मुकेश कुमार यादव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओस गिरै आंगन।
आरु गिरै प्रांगन।
शीत लहर।
करै कहर।
चारों पहर।
गांव-शहर।
थर-थर-थर
हिम-कण।
वस्त्र विहीन तुहिन कण।
पल-पल क्षण-क्षण।
कास-पलास-अशोक गाछ।
झर-झर-झर
हवा सिसकलो।
कटी-कटी खिसकलो।
आगू बढ़लो।
जाय छै चढ़लो।
सर-सर-सर
ऐंगना ऐलै धूप।
मनो के भावै ख़ूब।
मौसम के नया रूप।
सुग्गा-मैना-कौवा।
फर-फर-फर
आक-धतूरा।
अच्छत पान पूरा।
चीलम सोटै।
दिन-रात घोटै।
बम-बम भोले।
जय शिव-शंकर।
हर-हर-हर