भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शरद ऋतु बड़ी सुहानी / मुकेश कुमार यादव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:57, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
मनमोहक मस्तानी।
वर्षा ऋतु विदा भेलै।
गर्मी उमस साथ गेलै।
साल भर बाद।
ऐतै जखनी याद।
वर्षाबे लागतै पानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
हरसिंगार रो फूल झड़ै।
स्वागत में पांव पड़ै।
धूप थोड़ो कम चढ़ै।
गर्मी नञ् जादे बढ़ै।
नञ् करै मनमानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
मनाबो ख़ूब पर्व त्यौहार।
दशहरा-दिवाली मिली के यार।
भैया दूज।
बहना खुश।
शरद पूर्णिमा जानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
शरद रो विहान।
खीचै हमरो ध्यान।
कोहरा रो चादर।
ओढ़ै बड़ी आदर।
गाछ-वृक्ष सादर।
लागै ज्ञानी-ध्यानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
ओस बूंद लागै मोती।
मन करै राखौं हसोती।
खेत रो हरियाली।
चुनरी लागै धानी।
रोज-रोज विहानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।
मौसम बदलै करवट।
आँख खोलै झटपट।
शरद ऋतु गेलै।
हेमन्त ऋतु ऐलै।
सुतो चद्दर तानी।
शरद ऋतु बड़ी सुहानी।