भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँप और शहर / अहिल्या मिश्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 31 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहिल्या मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुना है आजकल शहर में
साँप ही साँप
बसने लगे हैं।
आओ चले चलें
गाँव के बीच से होते हुए अंतिम
छोर से गुजरते हुए
जंगल की ओर
जहाँ
एक सदन / एक कुटिया / एक मचान
बनाएँ।
वन काट कर खेत रोपें
नए सिरे से एक बरगद उगाएँ
जिसकी छाया में
अपने चेहरे से फूटते
पसीने सुखाने को बैठ पाएँ।
एक पीपल, एक अशोक और एक आम भी
अंकुरित करें, गहरी नींद सोने को।
किन्तु वहाँ बसने वाले
केवल हम हों और
आकार घर बसाए
अपनी बहन शांति
तथा भाई बंधुत्व
बीच में एक पुतला लगाएँ
जिस पर लिख दें
न्याय!