जीवन के कुछ चित्र / अहिल्या मिश्र
जीवन हाँ जीवन तुम-तुम्हें-तुम-तुम्हें
एक दिन तुम्हारी खोज में निकल पड़ी
अनजान डगर पर
सबसे पहले
कितनी खोज के बाद
तुमसे मिल पाई थी मैं
तुम-हाँ-तुम-तुम्ही तो थे वहाँ तुम
एक पतझड़-सा नज़र आए तुम
जब तुम्हें रधिया की जीर्ण झोपड़ी के
बाहर खड़ी होकर देखा मैंने
चीथड़ों में लिपटी जीवित लाश भर हीं
तो थे तुम?
जीवन तुम-हाँ तुम-जीवन तुम।
एक बार फिर मिल पाई थी तुमसे मैं
जब पॉंव में छाले लिए
उस ताड़ के वृक्ष के नीचे बैठी
सुस्ता रही थी मैं-
देखा कि तुम ही तो थे, हाँ-तुम-जीवन-तुम।
मंगलसूत्र के फंदे से
लटकी उस नववधू के
माँग की पेख में
दहेज की आग में धू-धू जलती
जलती लाल सिंदूर की रेख में
मचल रहे थे तुम
बस एक श्वास के लिए
तुम जीवन तुम, हाँ-तुम।
बदहवास-सी भाग चली थी मैं
होश संभाल कर फिर
खोजने लगी तुम्हें, हाँ तुम्हें जीवन हाँ-हाँ तुम्हें
भागती रेल गाड़ियों में बैठे हुए
देखा था तुम्हें
स्टेशन पर फैले नन्हे हाथों पर
कभी छोटे-छोटे ब्रेड के टुकड़े
और कभी बची खुची बासी रोटी के बीच
भारत का भविष्य बनकर
फैले हुए थे तुम
हाँ तुम, जीवन तुम, हाँ तुम।
बंधुता / एकता / समता के मुकुट पर
तांडव वाले मुस्कान की दर्द की लकीरों
में छुपे साठ वर्षों की गाथा गा रहे थे तुम
हाँ तुम ए जीवन तुम ए जीवन तुम।
गंगवा की कमर से लिपटी
बिचटी की चीरें
बहती नाक को चाटती जीभ
विमली की फटी साड़ी से
केले की घौंद-सा चीर कर उफनता यौवन
बूढ़ी सास की झुकी कमर गठिया युक्त घुटने
दम्में के ज़ोर से हाँफती चाल
विवशता की आँसुओं में
बहते नज़र आए तुम, हाँ तुम
बुढ़वा ससुर की
रात भर चलने वाली खो-खो का सरगम
चूल्हवा के हैदराबादी बापू को ख़त लिखवाती
रो-रोकर दुखड़ा गाती चमेलिया के आस भरे
समुद्री दिन में लहरा रहे थे तुम
हाँ तुम, जीवन तुम, जीवन तुम, हाँ तुम।
गली के नौजवानों को मदारी का खेल सिखाते रहे
उन्हें नौकरी के डमरु पर नचाते रहे।
जीवन तुम, हाँ तुम जीवन तुम।
फिर समस्या से टकराकर
सिर पटकते वापस आ रहे थे तुम
कितना बेमानी-सा था तुम्हारा आगमन जीवन।
तुम गाते रहे इन्हें रिझाते रहे
तेरे लिए मैंने रंग-बिरंगे सपने बुने
अपने-सपने सपने-अपने
रोटी धोती छप्पर सिर पर
कभी तुम उन अधखाए भूखों के बीच
रोटी का सपना बनकर छाते रहे
जेठ की तूफानी बारिश-सा लुभाते रहे तुम
जीवन तुम्हीं तो थे
हाँ तुम जीवन तुम।
देश को 21वीं सदी के उत्तरार्ध के
मोहक स्वप्न में पिरोने वालों ने
तुम्हारी खुली आँखों का सपना
बेचकर अपने लिए सम्मान की चादर खरीदी है।
ऐसे में उन्हें कहीं नज़र नहीं आए तुम
तुम, हाँ तुम जीवन तुम।