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सांसों का अनुभव / मोहन अम्बर

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यह मेरी साँसों का अनुभव, मानों या मत मानों भाई।
कुछ पहाड़ कुछ सागर बोले
हमसे माँग तुझे कुछ देंगे
यह बरसात गुलाम हमारी
हम मरूथल मधुवत कर देंगे
लेकिन प्राण अमर-बेली का टुकड़ा सीना ताने बोला
जिसको प्यास अमर करती हो
उसका बादल क्या कर लेंगे
जब-जब निष्ठुर दुष्कालों ने तरू की उमर घटाई भाई
तब-तब थकन छाँह के खातिर मेरा द्वार बजाने आई,
यह मेरी साँसों का अनुभव, मानों या मत मानों भाई।
नक्षत्रों का यह कहना है
हमने सूरज को उजलाया
इसी लिए तो शरमा सूरज
नहीं निशाओं में उग पाया
लेकिन एक दिया मावस पर अपनी उमर चढ़ा कर बोला
जिसका है संघर्ष तिमिर से
उसका कितना साथ निभाया?
जब-जब पागल तूफानों ने, मेरी ज्योति बुझाई भाई
तब-तब तुमने आँख मूँद ली और ओढ़ ली धुन्ध रजाई,
यह मेरी साँसों का अनुभव, मानों या मत मानों भाई।
गीत-सिंधु सब तेरे लेकिन
लगा कि ये उथले-उथले हैं
इस पर यह आरोप लगाया
गायक प्राण अभी पगले हैं
लेकिन कोई सांस तुनक कर, मुझको भला बुरा कह बैठी
बोली तट की रेत खोज तू
कहा बहुत मोती निकले हैं
जब-जब जिसने जीवन गाथा गूँथ-गूँथ कर गाई भाई
तब-तब स्वप्न प्रभावित जग ने उस गायक की हँसी उड़ाई
यह मेरी साँसों का अनुभव, मानो या मत मानो भाई।