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मन से / मोहन अम्बर

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यदि ऐसा दिन मिले तुझे मन, उस दिन मुझको भूल न जाना।
जिस दिन बादल घिरे मगर बरसात नहीं हो,
जिस दिन हँसे बहार, बाग़ में पात नहीं हो,
जिस दिन कोयल मोर पपीहे बैठे हो अनबोला लेकर,
उस दिन मेरे गायन-गुँजन छंद हिंडोले झूल न जाना,

यदि ऐसा दिन मिले तुझे मन, उस दिन मुझको भूल न जाना।
जिस दिन ग्वाले की बंशी का स्वर गायब हो,
जिस दिन पंछी सोच रहे हों संध्या कब हो,
जिस दिन दर्शन प्यास विकल हो, किन्तु पुजारी द्वार न खोलें,
उस दिन मेरे पावन पूजन तू मन्दिर तक फूल न लाना,

यदि ऐसा दिन मिले तुुझे मन, उस दिन मुझको भूल न जाना।
जिस दिन पलक भिगोये, अलक बिखेरे धरती,
तुझसे पूछे कब निकलेगी सच की अरथी,
जिस दिन सूरज नाराजी के भेज रहा हो तुझे संदेसे,
उस दिन प्यासे-प्यासे सावन, तू भी थोड़ी धूल उड़ाना,
यदि ऐसा दिन मिले तुझे मन, उस दिन मुझको भूल न जाना।