भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेष है यात्रा / रामकृपाल गुप्ता
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 3 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृपाल गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत पिया पर प्यास गई ना,
अमृत घट से रास भई ना।
सरित सरोवर निर्झर सागर
घाट घाट भटका ले गागर
सावन बरसा भादों बरसा
जियरा बूँद-बूँद को तरसा
मन मितवा से सुरति भई ना
बहुत पिया पर प्यास गई ना
घूमा तीरथ मन्दिर सारे
कहीं न पहुँचा राम दुआरे
व्रत उपास पूजा करि डारा
फूटी नहीं राम जल धारा
सूखे कंठ हुलास भई ना
बहुत पिया पर प्यास गई ना
सखि, सरोवर सागर न्हाया
घाट घाट का पानी पीय
भीतर कहीं उजास हुई ना
बहुत पिया पर प्यास गई ना