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ख़ुद को उससे जुदा नहीं करते / जतिंदर शारदा

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ख़ुद को उससे जुदा नहीं करते
नाख़ुदा को ख़ुदा नहीं करते

आईना स्वयं देखने वाले
दूसरों से गिला नहीं करते

फूल को डाल पर ही खिलने दो
फूल टूटे खिला नहीं करते

दोस्त बन कर मिलो तो हम जाने
दुश्मनों से मिला नहीं करते

होंठ चुप हैं तो आँख कह देगी
राज़ दिल के छिपा नहीं करते

कौन बाँधेगा अब तूफानों को
हम किसी से दबा नहीं करते

गर भला हम किसी का कर न सकें
हम किसी का बुरा नहीं करते

ईंट का जब जवाब पत्थर हो
लोग फिर हौसला नहीं करते

जिन चिरागों को हम जलाते हैं
आंधियों में बुझा नहीं करते

पत्थरों पर लकीर होती है
पानियों पर लिखा नहीं करते