शरदें तोड़ै साग रे / कुमार संभव
चना खेत में चुकमुक बैठी
शरदें तोड़ै साग रे।
कन्नी परछी, टूसोॅ तोड़ै
कोवोॅ में राखी केॅ झाड़ै,
खोछा गोछियाबै, केहुनी मोड़ै
गुनगुन धूपोॅं में बुली-बुली केॅ,
मन भरलोॅ अनुराग रे
चना खेत में चुकमुक बैठी
शरदें तोड़ै साग रे।
बीछी-बीछी सागोॅ केॅ काटै
रीची-रीची केॅ ओकरा बाँटै,
चूल्हा पर राखी के घाँटै
आगिन पर दै केॅ रान्है छै,
रहि-रहि उचकाबै आग रे
चना खेत में चुकमुक बैठी
शरदें तोड़ै साग रे।
जाड़ा देखी ही ऐलोॅ छै पिया
बरस बाद जुड़तै हमरोॅ हिया,
रात आस में छटपट जिया
सोना-चानी के छै गहना,
गजरा पुष्प पराग रे
चना खेत में चुकमुक बैठी
शरदें तोड़ै साग रे।
स्वागत में छै हरिहर धरती
सीत बूँद में भरलोॅ छै मोती,
साँझ खड़ी लै हाथोॅं में बाती
हर्षित धरा, सुहागिन लागै,
भरि-भरि आँख विहाग रे
चना खेत में चुकमुक बैठी
शरदें तोड़ै साग रे।