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वरषा बाद शरद ऋतु एैलै / कुमार संभव

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वरषा बाद शरद ऋतु एैलै

मेघ रहित नभ तारा सें भरलोॅ
राका रजनी भी लागै उमतैलोॅ,
पोखरी किनरा में हंसोॅ छै बैठलोॅ
लाल कमल के छै रूप निखरलोॅ,
कुँज-कुँज में मालती के खिलबोॅ
जीव चराचर रसिक मन होलै,
वरषा बाद शरद ऋतु एैलै।

कली-कली पर भौंरा के मड़रैबोॅ
पुष्प पराग के झड़ी-झड़ी गिरबोॅ,
शशि, सरंग सब रस-रंगोॅ सें भरलोॅ
सुर साज पर खग कुल के थिरकबोॅ,
रसमय रूप शरद रानी के
सुख अपार सगरो भरि गेलै,
वरषा बाद शरद ऋतु एैलै।

विमल शरद सें भरलोॅ सरंग छै
सुर ताल में नाचै विमल मयंक छै,
कंचन नभ छै तारा सें चकमक
मस्त गगन सब साथ संग छै,
पोर-पोर भरलोॅ अनंग छै
चातक, चकोर भी भरमैलै,
वरषा बाद शरद ऋतु एैलै।