भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरमोही पिया आबी गेलै / कुमार संभव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 12 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निरमोही पिया आबी गेलै

हम्में याद न भूलबै हमंतोॅ के
निरमोही पिया आबी गेलै।

हेमंतो में शीत बढ़ै अत्ते
पिय बाहीं में सुख छै जत्ते,
छवि सरसोॅ फूलोॅ के निरखी
सुखमय जिनगी होय छै कत्तेॅ,
साथ पिया जब नरूआ पर सुतौं
हेमन्त हिया संग जुड़ी गेलै,
निरमोही पिया आबी गेलै।

हेमंतोॅ के स्वागत में धरती
रंग-बिरंग फूलोॅ से भरलोॅ छै,
चिकना फूलोॅ के नकबेसर में
प्रिया देखी, हेमन्तोॅ बोरैलोॅ छै,
हरिहर धरती के सुखद बिछौना
पावी हेमंत, खेतै में सुती गेलै,
निरमोही पिया आबी गेलै।

एैतें हेमंत शोभै छै धरती
विविध रंग हरियाली छै,
गेंदा, जूही, चंपा केॅ देखी
हेमंत मनाबै खुशियाली छै,
संभव ' मन केॅ बहुते प्यारो लागै
घर-घर, अन्न-धन से भरि गेलै,
निरमोही पिया आबी गेलै।