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याद-ए- मंगलेश / सुरेश सलिल
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वो आया था जो करने, सारे काम कर गया
हम सिर ही धुनते रह गए, वो नाम कर गया
जो देखते हैं हम वो सब अर्था नहीं पाते
जो उसने देखा शाइरी के नाम कर गया
जीने के लिए उसने भले चाकरी की हो
हर मोर्चे पे डट के बड़े काम कर गया
डबराल मंगलेश था इक दोस्तों का दोस्त
जिससे मिलाया हाथ उसे गुलफ़ाम कर गया
नायाब परिन्दा था वो शजरेआब<ref>पानी का पेड़, काफल पानी</ref> का
हर आन उस शजर को वो सरनाम कर गया
गो उड़ गया वो छोड़ कर हम सब को चश्म-ए-तर
पर शाइरी को अपनी वो ख़ुशगाम<ref>ख़ूबसूरत, सरलप्रवाही</ref> कर गया
शब्दार्थ
<references/>