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हमारे मध्य / निज़ार क़ब्बानी / श्रीविलास सिंह

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हमारे मध्य
बीस वर्ष की उम्र
तुम्हारे होठों और मेरे होठों के मध्य
जब वे मिलते हैं और मिले रहते हैं
लय हो जाते हैं वर्ष
बिखर जाता है टूट कर सम्पूर्ण जीवन का शीशा

जिस दिन मैं मिला तुमसे मैंने फाड़ डाले
अपने सभी मानचित्र
और अपनी सारी भविष्यवाणियाँ
एक अरबी घोड़े की भाँति मैंने पा ली गन्ध वर्षा की
तुम्हारी
इससे पहले कि यह भिगोती मुझे
मैंने सुनी तुम्हारी आवाज़ की धड़कन
तुम्हारे बोलने के पूर्व
बिखेर दिए तुम्हारे केश
तुम्हारे उन्हें बाँधने के पूर्व ही ।

नहीं है कुछ जो मैं कर सकता हूँ
नहीं है कुछ जो तुम कर सकते हो
क्या कर सकता है घाव
जब आ रहा हो खंज़र उसकी ओर

तुम्हारी ऑंखें हैं बारिश की भाँति
जिसमें डूब रहे हैं जहाज़
और भुला दिया जो कुछ भी लिखा था मैंने
दर्पण में नहीं होतीं स्मृतियाँ

ईश्वर, यह क्या है कि हम कर देते हैं आत्मसमर्पण
प्रेम के समक्ष, सौंप देते चाबियाँ अपने शहर की
ले आते मोमबत्त्तियाँ और अगरु उस तक
गिरते हुए उसके पैरों में प्रार्थनारत
क्षमा हेतु
हम क्यों ढूँढ़ते हैं इसे और सहते हैं
सब कुछ जो यह करता है हमारे साथ
सब कुछ जो यह करता है हमारे साथ ?

स्त्री जिसकी वाणी
घोल देती है चान्दनी और मदिरा
वर्षा में
तुम्हारी कुहनियों के दर्पण से
दिन प्रारम्भ करता है अपनी यात्रा
और जीवन मिलता है समुद्रों को

मैं जानता हूँ जब मैंने कहा
मैं तुम्हें करता हूँ प्रेम
कि मैं आविष्कार कर रहा था एक नई भाषा का
एक शहर के लिए जहाँ पढ़ नहीं सकता था कोई
कि मैं सुना रहा था अपनी कविताएँ
एक ख़ाली रंगशाला में
और ढाल रहा था अपनी मदिरा
उनके लिए जो नहीं ले सकते
इसका स्वाद

जब ईश्वर ने दिया तुम्हें मुझको
मैंने महसूस किया कि उसने भेज दी है
हर चीज़ मेरी ओर
अनकहा करके अपनी सभी किताबों को

कौन हो तुम
स्त्री, मेरे जीवन में उतरती कटार की भाँति
खरगोश की आँखों-सी कोमल
मुलायम बेरी की त्वचा की तरह
चमेली की माला-सी पवित्र
किसी बच्चे की खिलखिलाहट-सी मासूम
और उधेड़ती शब्दों की भाँति

तुम्हारे प्रेम ने उछाल दिया मुझे नीचे
आश्चर्य की भूमि में
उसका आक्रमण था लिफ्ट में प्रवेश करती
किसी स्त्री की सुगन्धि की भाँति
मैं रह गया आश्चर्यचकित इस बात से
एक कॉफ़ी बार में बैठा
लिखता एक कविता
मैं भूल गया कविता को
मैं रह गया आश्चर्यचकित
पढ़ता हुआ अपनी हस्तरेखाएँ
मैं भूल गया अपनी हथेली
यह गिरा मुझ पर एक अंधे बहरे जंगली उल्लू की तरह
इसके पंख उलझ गए मेरे पंखों से
उसके विलाप में दुख था मेरे विलाप का

मैं रह गया आश्चर्यचकित
बैठे हुए अपने सूटकेस पर
प्रतीक्षारत दिनों की ट्रेन के लिए
मुझे भूल गए दिन
मैंने यात्रा की तुम्हारे साथ
आश्चर्य की भूमि की

तुम्हारी छवि अंकित है
मेरी घड़ी के शीशे पर
यह अंकित है उसकी प्रत्येक सुई पर
यह खुदी है हफ़्तों पर
महीनों और वर्षों पर
मेरा समय अब नहीं रहा मेरा
अब हो केवल तुम ।