जो स्वतन्त्र है, वह बोलेगा,
पराधीन क्या मुँह खोलेगा?
एक बार आकाश मिले तो,
वह भी अपने पर तोलेगा।
अभी बहुत मधु घोल रहा है,
अवसर पाकर विष घोलेगा।
जनहित में अपने हाथों को,
बहती गंगा में धो लेगा।
थू-थू होती है, हो जाये,
वह भी परम्परा ढो लेगा।
जैसे सब सोते आये हैं,
पाँच बरस वह भी सो लेगा।
भेड़-वेश में कुटिल भेड़िया
भेड़ों में शामिल हो लेगा।