Last modified on 17 अप्रैल 2021, at 23:55

चन्दनी चरित्र हो गया / राजेन्द्र वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 17 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चन्दनी चरित्र हो गया,
मैं सभी का मित्र हो गया।

जिन्दगी सँवर गयी मेरी,
फूल से मैं इत्र हो गया।

पूर्णिमा है, ज्वार उठ रहा,
सिन्धु-सा चरित्र हो गया।

रश्मियों के नैन हैं सजल,
इन्द्रधनु सचित्र हो गया।

कामना की पूर्ति हो गयी,
मन मेरा पवित्र हो गया।

आदमी करे तो क्या करे,
वक़्त ही विचित्र हो गया।

आत्मा विदेह हो गयी,
पंचतत्त्व चित्र हो गया।