भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:12, 20 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं
अंधेरे में भी जुगनू मुस्कुराते हैं

बहुत कम लोग कर पाते हैं ये साहस
चतुर चेहरों को आईना दिखाते हैं

जो उड़ना चाहते हैं उड़ नहीं पाते
वो जी भर कर पतंगों को उड़ाते हैं

नहीं माना निकष हमने उन्हें अब तक
मगर वो रोज़ हमको आज़माते हैं

उन्हें भी नाच कर दिखलाना पड़ता है
जो दुनिया भर के लोगों को नचाते हैं

बहुत से पट कभी खुलते नहीं देखे
यूँ उनको लोग अक्सर खटखटाते हैं

हमें वो नींद में सोने नहीं देते
हमारे स्वप्न भी हम को जगाते हैं