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आत्म-परिचय का गीत / जहीर कुरैशी
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हम स्वयं से भी
अपरिचित हो गए हैं
रास्ते हैं
और उनकी दूरियाँ हैं
दूरियों की भी
अलग मजबूरियाँ हैं
हम भटकते रास्तों में
खो गए हैं
वासनाएँ
ज़िन्दगी से भी बड़ी हैं
प्यास बनकर
उम्र की छत पर खड़ी हैं
तृप्ति के पथ पर
मरुस्थल हो गए हैं
पाँव पीछे
लौट जाना चाहते हैं
लौटकर
धूनी रमाना चाहते हैं
विगत पथ पर
लोग काँटे बो गए हैं