हाइकु / कमला निखुर्पा / कविता भट्ट
1
आई हिचकी
अभी-अभी भाई ने
चोटी खींची
आई बडुळि
अबि दिदा न, जन
खैंचि हो चुफ्लि
2
तेरा ये नेह
बिन बदरा के ही
बरसा मेह।
तेरि या माया
बिन बादळा क ई
बर्खि गे पाणी
3
बिंध गई मैं
हँसी में ही छुपी थी
तेरी सिसकी।
घैल ह्वयौं मि
हैंसी माँ इ लुकीं छै
तेरु उस्कण
4
इक सावन
बरसे मन भीतर
इक बाहर।
एक सौंण च
बर्खुणु मना पेट
एक भैर बि
5
पुकारो कोई
ढल रहे चाँद को
चकोर रोई।
धै लगावा क्वी
ढ़लकदि जूनौ तैं
चकोर रूँणु
6
उठी हिलोर
सिंधु बन छलकी
नैनों की झील।
उठी गे लैर
समोद्र ह्वे छळकि
आँख्यों कु ताल
7
मैं तो पतंग
डोर तेरे हाथों में
खोजूँ अनंत।
मि त पतंग
डोरि त्यारा हत्थ माँ
खुजौं अनन्त
8
नभ के चाँद
निहारता होगा ना
तुम्हें वह चाँद!
द्योरा कि जून
हेरदि इ होलि ना
तुम तैं जून
9
उमड़ी यादें
भूली-बिसरी बातें
भीगा तकिया।
उरळिं खुद
भूलीं-बिसरीं बत्थ
भिजे सिर्वाँणु
10
खुली खिड़की
पूरब पड़ोसी की
उजाला हुआ।
खुली जु मोरी
पुरबै पड़ओसी
उजाळु ह्वे गे
11
जागो री धरा
आ बैठी सिरहाने
भोर किरण!
बिजी जा पिर्थी
ऐ कि बैठी सिर्वाँणा
बिन्सरी किर्ण
12
कटे जंगल
गँवार बेदखल
उगे महल।
कटिन बौंण
गौं वळा बेदखल
उग्यन मैल
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