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हाइकु / भावना सक्सैना / कविता भट्ट

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1
उदास तरु
था पाखियों का डेरा
आज अकेला।

उदास्यूँ डाळु
छौ पग्छियों कु डेरु
आज यकुलि
 2
चाँद ने छुआ
लहर उठ आई
भीगी लजाई।

जून न छुई
लैर उठ्ठी कैं ऐ गि
भिजे सरमै
3
 साँझ बहाए
अँजुरी भर दर्द
निशा पी जाए।1

रूम्क बगौन्दि
अंजुळ भोरी पिड़ा
रात पी जान्दी
 4
सूना आँगन
उड़ गए हैं पंछी
 नीम अकेला।

सुन्न ह्वे चौक
उड़ि गैनी पगछी
नीम यकुलि
 5
आहट बिन
नव पाहुन आया
खिली बगिया।

सबद बिना
नैयूँ पौणू ऐ ग्याई
खिली सग्वाड़ू
6
 पात पुराने
कहें एक कहानी-
बीती जवानी!

पत्ता पुरणा
सुणौणा एक कत्था
बिति गे ज्वानी
 7
सजा जुगनू
उलझी लटों पर
 निशा दमकी।

सजी जोगींण
उलझे लटुल्यों माँ
रात चमकीं ।
8
झील-दर्पन
देख रही घटाएँ
केश फैलाएँ।

तालौ कु ऐनाँ
देखणि घटा इन
लटुली फुफ्तै
9
सर्द हवाएँ
गुम हुआ सूरज
आ मिल ढूँढें।

ठण्डी हवा छ
हर्च्युं च सुर्ज दा बि
औ मिलि ख्वजाँ
10
 धुआँ दैत्य-सा
पसरा हर ओर
लीलता साँसें।

धुआँ दैंत सि
पसरि चौतरफा
खाणु च साँस
 11
 ओस की बूँद
बस इक प्यारा पल
यही जीवन।

ओंसै कि बुन्द
दा एक प्यारी घड़ी
यु ई च ज्यूँण
 12
देख दर्पण
आक्रांत हुआ मन
बीता यौवन।

देखि कि ऐंनाँ
बिचैन ह्वे गे मन
बिति गे ज्वानी
-0-