भूमिका-अंश / कविता भट्ट
दो शब्द
मुझे सृजनकर्म में प्रवृत्त रखने और अपनी कृपा से मेरे जीवन-पथ को प्रकाशित करने वाली सर्वव्यापी व सर्वशक्तिमान् माँ त्रिशक्ति के चरणों का कोटिशः वन्दन!
इन दिनों सम्पूर्ण संसार एक क्षुद्र विषाणु कोरोना से स्वयं की अस्तित्व-रक्षा हेतु संघर्षरत है। मानव का आत्मबल समस्त आपदाओं को परास्त करने में सक्षम है। आत्मबल व सकारात्मकता के संचार में विविध साहित्यिक विधाओं ने विशिष्ट सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया। साहित्यकारों ने काव्यविधा द्वारा समाज को जो आत्मबल तथा आत्मरंजन प्रदान किया, वह वस्तुतः ऐतिहासिक है। उल्लेखनीय है कि साहित्यकारों ने कोविड-19 के इस अत्यंत क्रूर काल को भी वैचारिक प्रस्फुटन, साहित्यिक समृद्धि, नैतिक मार्गदर्शन, सौन्दर्यबोध तथा सामाजिक हित के कालखंड में परिवर्तित कर दिया।
गर्व का विषय है कि पौराणिक काल में भारतभूमि पर प्रस्फुटित वैदिक ऋचाओं का सारगर्भित संदेश पूरे विश्व के लिए शोध का विषय है। भारत से प्रेरित होकर अन्य देशों ने भी साहित्य को विस्तृत दृष्टि व सम्पन्नता प्रदान की है। जिस सूत्रात्मकता के साथ भारतीय मनीषियों ने अनेक गूढ़ दार्शनिक रहस्यों को प्रकट किया, उस सूत्रात्मकता व सारगर्भित भाव से परिपूर्ण भारतीय विधाओं पर हमें गर्व है और होना भी चाहिए। तथापि विदेशों में सृजित नई विधाओं को अपनाना और नये प्रयोगों द्वारा भारतीय साहित्य को परिसम्पन्न करना भी हम सभी का साहित्यिक धर्म है। ऐसी प्रवृत्ति 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के भाव को और भी पुष्ट करेगी। नई विधाओं और इनके अनुवाद को प्रोत्साहित तथा परिवर्द्धित किए जाने के फलस्वरूप ही हमारा साहित्यिक दृष्टिकोण स्वस्थ, समग्र और सम्पन्न होगा।
उल्लेखनीय है कि हाइकु विधा का अवतरण जापान की धरा पर अवश्य हुआ; किन्तु आज यह विधा हिन्दी भाषा के माध्यम से विश्वभर में लोकप्रिय हो चुकी है। हाइकु का मित-सारगर्भित आकार और अथाह सौन्दर्य इसका प्रमुख कारण है। इस विधा को हिन्दी में लोकप्रिय बनाने व प्रचारित करने का श्रेय कविता कोश (संस्थापकः ललित कुमार) , हिन्दी चेतना (प्रमुख सम्पादकः श्याम त्रिपाठी) , हिन्दी हाइकु वेब (सम्पादक द्वयः डॉ. हरदीप कौर संधु तथा रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ) , उदन्ती (डॉ-रत्ना वर्मा) को जाता है। भारतीय दूतावास मॉरिशस और विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरिशस ने 10 अप्रैल 2021 को हाइकु पर विश्व स्तरीय कार्यक्रम करके हाइकु और हाइकु-अनुवाद की महत्ता प्रतिपादित की है। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए भारतीय दूतावास की द्वितीय सचिव सुनीता पाहूजा के साथ अंजू घरबरन एवं कल्पना लालजी की सक्रिय भूमिका रही। इन सबको भी हृदय से धन्यवाद करती हूँ। हिन्दी के जिन हाइकुकारों ने इस विधा के लिए अहर्निश समर्पण-भाव से कार्य किया है, मैं उन सभी के प्रति कृतज्ञता, वन्दन और अभिनन्दन का भाव व्यक्त करती हूँ। हिमांशु जी के मार्गदर्शन और आत्मीय सहयोग से मेरे इस हाइकु-संग्रह का कार्य अल्पसमय में परिसम्पन्न हो सका; अस्तु, पुनीत साहित्यिक धर्म का निर्वहन करते हुए उनका विशेष रूप से हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ। मेरे लेखन को प्रोत्साहन प्रदान करने वाले, आत्मीय भाव से पढ़ने व ग्रहण करने वाले अपने समस्त सुधी पाठकों व प्रशंसकों के प्रति मैं सदैव नतमस्तक और आभारी हूँ।
अनुवाद भाषाओं को जोड़ने वाला सेतु है। हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद का बहुत महत्त्व है। अत्यंत हर्ष का विषय है कि नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत भारत सरकार ने हिन्दी के साथ ही मातृभाषा के रूप में विभिन्न लोकभाषाओं के माध्यम से पाट्ठ्यक्रम को अधिक उपयोगी व सरल बनाने का प्रस्ताव रखा है। भारत जैसे सांस्कृतिक वैविध्ययुक्त देश में निश्चित रूप से यह अनुशंसा प्रशंसनीय है। अब हमारे देश के नवांकुरों को किसी थोपी हुई भाषा में शिक्षा लेने की बाध्यता और अनेकशः अंग्रेज़ी से डरकर आत्महत्या करने तक जैसी वीभत्स चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति के धरातल पर अवतरित होते ही इसके आशानुरूप परिणाम भी अवश्य ही प्राप्त होंगे और देश की शिक्षा व्यवस्था में आशानुरूप सकारात्मकता का संचार होगा। इस हेतु भारत की वर्तमान सरकार को आत्मिक साधुवाद और बधाई सम्प्रेषित करती हूँ। इस दृष्टि से साहित्य तथा अन्य विषयों में अनुवाद पूर्व से भी अधिक आवश्यक हो गए हैं। स्वाभाविक है कि भविष्य में अनुवाद-कार्य प्रासंगिक तथा और भी अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे। यह निर्विवाद सत्य है कि जिस प्रकार हिमालय से उद्गमित विभिन्न छोटी-बड़ी नदियों के अस्तित्व से ही असीम जलराशि गंगा का अस्तित्व है, उसी प्रकार गंगा की स्वच्छता तथा संरक्षण हेतु इन नदियों की स्वच्छता व संरक्षण अपरिहार्य हैं। इसी प्रकार हिन्दी के संवर्धन हेतु भारत के विविध राज्यों में बोली जाने वाली सभी लोकभाषाओं का संवर्धन व प्रचार-प्रसार आवश्यक है।
उपर्युक्त विचारों के आधार पर मैंने इस हाइकु-संग्रह में विश्वस्तर पर पाँच देशों के लोकप्रिय हाइकुकारों के हिन्दी हाइकु का संकलन, सम्पादन और गढ़वाली भाषा में अनुवाद किया है। यह उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में बोली जाने वाली लोकभाषा होने के साथ ही मेरी मातृभाषा भी है। यह अत्यंत मधुर है और संस्कृत की शब्दावली को स्वयं में समेटे हुए है। गढ़वाली समुदाय भारत के विविध प्रान्तों और विश्व के विविध देशों में रहते हुए अनेक क्षेत्रें में प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। उल्लेखनीय है कि बाहर रहते हुए भी वह अपनी संस्कृति, भाषा व परम्पराओं को सुन्दरता के साथ परिपोषित भी कर रहा है। यह हाइकु-संग्रह विश्व के मानचित्र में कहीं पर भी अवस्थित हिन्दी व गढ़वाली साहित्यकारों, पाठकों व अन्य सभी भगिनी-बन्धुओं के लिए सुखद अनुभूति सिद्ध होगा। यह सुवासित समीर के झोंके के समान आनन्दित करने वाला होगा; ऐसा मेरा विश्वास है। -0-
द्वी सबद!
मि तैं रंचणा का काम माँ अगनै बढ़ौण वळी अर अपड़ी किरपा से म्यारा ज्यूँणा बाटा माँ उजळु फैलौंण वळी संग्ता विराजमान अर सर्वसग्तिमान माँ त्रिसग्ति का चरणू की बारम्बार वंदना करदु!
यूँ दिनू सैरू संसार एक छुद्दर विषाणु मनैं अपड़ी साकत बचौणा वास्ता संघर्ष कन्नू च। मनखी कु आतमबल सब्बि आपदौं तैं हरौंण माँ समर्थ च। अर अच्छा विचारु तैं फैलौणा का वास्ता बनी-बनी की साहित्यिक विधौ न ख़ास पाठ खेली। साहित्यकारुन कबिता की विधौं का ज़रिया समाज तैं जु आतमबल अर आतमरंजन द्यायी वु सच्च माँ इ इतिहास माँ लेखण लैक च। लेखण लैक बात य च साहित्य कारुन कोविड-19 का ये अत्ती क्रूर समौं तैं बि विचारु का फलण-फूलण, साहित्यिक समिरद्धि, नैतिक बाटु दिखौंणौ कु, बिगरैलापन देखण कु अर समाजा कि भलै का समौं माँ बदल्याली।
गर्ब कु विसय च कि पुरणा समैं माँ भारतै की धरती पर फल्याँ-फुल्याँ वेदू की ऋचौं कु सार-रैबार सैरा संसारा क वास्ता आजब्याळी खोज कु विसय च। भारत मनैं सिक्खी भाळी क दुसरा देसुन बि साहित्य तैं भौत बड़ी दृस्टि अर सम्पन्नता द्यायी। जैं छ्वटु का दगड़ि भारता का ऋसि-मुन्योंन बनि-बनि का गैरा दार्सनिक रहस्य बतैंन; वीं सूत्ररूप अर सार बिधौं पर हम तैं गर्ब च अर हुयुँ बि चौंदु। तब बि विदेसु माँ रंचीं नै बिधौ तैं अपणौण अर नया परयोगू का माद्धिम सि भारतीय साहित्य तैं सम्पन्न बणौण बि हम सब्युँ कु साहित्यिक धरम च। यनी पर्बिर्ती 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का भौ तैं हौर बि फन्न-फुन्न कु मौका देली। नई बिधौ अर यूँ का अनुवाद तैं पुळसै कि अर अगनै बढ़ौणौं कु इ परसाद च कि हमारु साहित्यिक नजर्या स्वस्थ, समग्र अर सम्पन्न होलु।
लेखण वळी बात य च कि हाइकु बिधा कु जलम जापानै कि भूमि माँ ज़रूर "वै, पर आज या बिधा हिन्दी भाषा का माद्धिम सि सैडा संसार का लोखु माँ परसिद्ध" वे गे। हाइकु कु छ्वटु सि अर सार वळु आकार अर भौत जादा बिगरैलु होण याँ कु बड़ु भारी कारण च। ईं बिधा तैं हिन्दी माद्धिम से लोखु माँ परसिद्ध बणौणौं कु अर फैलास कु जस कविता कोश (संस्थापकः ललित कुमार) , हिन्दी चेतना (परमुख सम्पादकः श्याम त्रिपाठी) , हिन्दी हाइकु वेब (द्वी सम्पादकः डॉ. हरदीप कौर संधु अर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ) , उदन्ती (संःडॉ. रत्ना वर्मा) तैं जाँदु। भारतीय दूतावास मॉरिशस अर विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरिशसन 10 अप्रैल, 2021 तैं हाइकु परैं बिस्वस्तरौ कु कार्यकरम करैकि हाइकु अर हाइकु-अनुवादौ कु भेल्लु पर्तिपादित कैरी। ये कार्यकरमै कि सफलता का वास्ता भारतीय दूतावासै कि द्वितीय सचिव सुनीता पाहूजा का दगड़ा-दगड़ी अंजू घरबरन अर कल्पना लालजी कि भौत अच्छी भूमिका रै; यूँ सब्युँ तैं बि मन से धन्यबाद देंदौं। हिन्दी का जौं हाइकुकारुन यीं बिधा का वास्ता दिन्न-रात समर्पण-सेवा भौ सि काम कैरि; मिं ऊँ सब्बु की सेवा माँ कृतज्ञता, वन्दन अर अभिनन्दन कु भौ रखदौं अर बुन्नु बि छौं। श्री हिमांशु जि न बाटु बतै अर आत्मीय दगड़ू बि द्यायी; जाँ कि वजै से म्यारा ये हाइकु संग्रै कु काम कम्म समैं माँ इ सम्पन्न " वे ग्यायी; याँ का वै; अपड़ा पबेतर साहित्यिक धरम तैं निभौंदा-निभौंदी मि ऊँ कु बिसेस रूप सि मन सि धन्यबाद देुंदु छौं। म्यारा लेखणैं की आदत तैं बिसेस उत्साह देण वळा आत्मीय भौ से पढ़ण अर अपण्यूँत दिखौंण वळा सब्बि अच्छा पाठकु अर परसंसा कन्न वळौं तैं हमेसा सीस झुकौंदौं अर ऊँ तैं धन्यबाद देंदौं।
अनुवाद भाषौं तैं जोड़ण वाळु पुळ च। हिन्दी अर हौरि भाषौं माँ अनुवाद कु भौत बड़ु मैत्त्व च। भौत खुसी की बात च कि नै सिग्छा नीति माँ भारत सरकारन हिन्दी का दगड़ा दगड़ी दुधबोली-भासौं का रूप माँ बनी-बनी की लोकभासौं का माद्धिम सि पाठड्ढकरम तैं हौरि बि काबिल अर अच्छु बणौणौं कु प्रस्तौ रक्खी। भारत जनाँ बनी-बनी का रूप वळा देस माँ यीं पैहल कि तारिफ करीं चौंदी। अब हमारा देस का नौन्याळु तैं कै बि थ्वपीं भासा माँ सिग्छा लेणैं कि मार-बाँध अर कै बार अंगरेजिन डौरिक ज्यू खोणैं कि जन भैंकर चुनौत्यों कु समणु नि कन्न पड़लु। नैं सिग्छा नीति का मळेटा माँ उतरदुइ आस का हिसाब सि याँकु फल बि मिललु अर देसै कि सिग्छा बिवस्था माँ आस का हिसाब सि सकारात्मकता कु फैलास बि होलु। याँ का वै; भारत की ईं सरकारौ त भौत-भौत साधुबाद अर बधै पौंछौंदौं। याँ का वै; साहित्य अर हौरि बिसयूँ माँ अनुवाद पैलि सि बि ज़रूरी " वै गेन। मण्ण वळी बात च कि औंण वळा समैं माँ अनुवाद कु काम हौरि बि जादा समौं का हिसाब सि अर फैदामन्द सिद्ध होला। यु बिल्कुल सच्च च कि जै ढंग सि हिमालै बटि निकळी छ्वटी-बड़ी गाड-गदन्यूँ का इ रौंण सि इतगा बड़ी भारी गंगाजी की साक च, ठिक वींइ तरौं सि गंगाजी की सफै अर सुरग्छा का वास्ता यूँ गाड-गदन्यू कि सफै अर सुरग्छा ज़रूरी च। ईं इ तरौं सि हिन्दी तैं बढ़ौंणा का वास्ता भारता का अलग-अलग परदेसू माँ बोले जाण वळी सब्बी बोलि-भासौं तैं बढ़ौंण अर परचार-परसार ज़रूरी च।
ऐंच लिख्याँ बिचारु का आधार परैं मिन ये हाइकु-संग्रै माँ संसार भर माँ काम कन्न वळा लोखु माँ पाँच देसु का पिरिय हाइकुकारु का हिन्दी हाइकु कु संकलन, सम्पादन अर गढ़वळी भासा माँ अनुवाद कैरी। या उत्तराखण्डा का गढ़वाळ क्षेत्र माँ बोलेण वळी लोकभासा होणा का दगड़ा-दगड़ी म्यरी दुधबोली बि च। या भौत मिठ्ठी अर संस्कृत का सब्दु तैं अफ्फु माँ समौखण वळी भासा च। गढ़वळी भै-बन्द भारता का अलग-अलग परदेसु अर संसारा का कै देसु माँ रौंदा-रौंदी बनी-बनी छेत्रू माँ भौत अच्छु काम कन्ना छन। या बात लेखण वळी च कि भैर रै कि बि वु अपड़ि संस्किर्ती, भासा अर रीति-रिवाज-परम्परौं तैं त पाळाँ-पोसणाँ छईं छन। यु हाइकु-संग्रै संसार का नग्सा माँ कक्खी बि रौंण वळा हिन्दी अर गढ़वळी साहित्यकारु, पढ़ण वळौं अर हौर बि सब्बी दिदि-भुल्यों-भै-बन्दु तैं भौत सुक्ख देण वळु अर सेळी पण्ण वळु सिद्ध होलु; यु एक खुसबोदार सुरसुरिया बथौं की तरौं मन तैं तिरपत करि देलु, आनन्द देलु; इन म्यरु बिस्वास च।