भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग लगा दी पानी में / अनामिका सिंह 'अना'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 20 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रामराज की जय हो, जय हो,
आग लगा दी पानी में ।
 
मन्दिर-मस्जिद में बैठा, उस
बुत के पढ़े कसीदे,
अखिल विश्व की सत्ता,
ने ही मूँद लिए हैं दीदे ।

फिर कोई जोखू बन आया
असलम दुखद कहानी में ।

ठकुरसुहाती करें चौधरी
डाल बुद्धि पर ताला,
लगा विवेकी चिन्तन में है
जातिवाद का जाला ।

घायल बचपन हुआ बिलोते
कट्टर धर्म मथानी में ।

अनाचार की विषबेलों ने
ज़हर हवा में घोला,
पाखण्डी चेले करते हैं
रोज़ - रोज़ ही रोला ।
 
न्याय-तुला भी नहीं उड़ेले
पानी चढ़ी जवानी में ।