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एक हरैया धरती/ रामकिशोर दाहिया

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तीसों दिन की बनी-मजूरी
ढोते सिर पर झौवा-छिब्बी
पीड़ा में भी
खुशी मनातीं
भूखी-थकी ठठरियांँ गातीं
जय जगदीश हरे
पेट उपास परे
टारे नहीं टरे

हफ्ते भर का खून पसीना
तीन दिनों का दबता दाबे
मालिक ने कर
दिया चुकारा
घर के सभी जरुरी खर्चे
चलनी के छेदों के जैसे
खोल रखा
अपना मुँह सारा
बीच राह में रकम बसूली
कर दी जेब भार मामूली
डण्डा किसे डरे
पेट उपास परे
दिन टारे नहीं टरे

जर-बुखार से पीड़ित बेटा
दर्द दाढ़ का प्राण निकाले
बिटिया घर
की नींव हिलाये
खपरे-घरियांँ बांँस-बल्लियांँ
देख रहे रोटी के लाले
कैसे नीम
हकीम बुलाये
हींसा एक हरैया धरती
कोंठा एक चार फुट परछी
घर भर गुज़र करे
पेट उपास परे
दिन टारे नहीं टरे

टिप्पणी :
हरैया : किसान द्वारा अपने खेत के किसी छोटे हिस्से को जोतने के लिये हल चलाकर चिह्नित की जाने वाली जगह।

-रामकिशोर दाहिया