भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिंग भेद / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 6 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणवीर सिंह दहिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्त्री पुरुष की दुनिया मैं स्त्री नीची बताई समाज नै॥
फरज और अधिकारां की तसबीर बनाई समाज नै॥
1
शादी पाछै पति गेल्याँ सम्बन्ध बणाणे का अधिकार
ब्याह पाछै माँ बणैगी नहीं तो मान्या जा व्याभिचार
पुरुष चौगरदें घुमा दिया दखे नारी का पूरा संसार
मां बेटी बहू सास का रच दिया घर और परिवार
एक इन्सान हो सै महिला या बात छिपाई समाज नै॥
2
परिवार का दुनियाँ मैं पुरुष मुखिया बणाया आज
सारे फैंसले वोहे करैगा पक्का फैंसला सुणाया आज
धन धरती सारी उसकी कसूता जाल बिछाया आज
चिराग नहीं छोरी वंश की छोरा चिराग बताया आज
सम्बंधां की छूट उसनै तो रिवाज़ चलाई समाज नै॥
3
फर्ज औरत के बताये घर के सारे काम करैगी या
बेटा पैदा करै ज़रूरी घर का रोशन नाम करैगी या
औरत पति देव की सेवा सुबह और श्याम करैगी या
सारे रीति रिवाज़ निभावै बाणे कति तमाम करैगी या
बूढ़े और बीमारां की सेवा जिम्मे लगाई समाज नै॥
4
पुरुष परिवार का पेट पालै उसका फ़र्ज़ बताया यो
महिला नै सुरक्षा देवैगा उसकै जिम्मे लगाया यो
दुभांत का आच्छी तरियाँ रणबीर जाल बिछाया यो
फर्ज का मुखौटा ला कै औरत को गया दबाया यो
बीर हर तरियाँ सवाई हो या घणी दबाई समाज नै॥