भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी राज दुलारी / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:59, 7 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव 'शशि' |अनुवादक= |संग्रह=राज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जन्मी बिटिया घर-अँगना में,
गूँज रही किलकारी।
परियों से भी प्यारी-प्यारी,
मेरी राज दुलारी॥
जी करता है गोद उठाकर,
सारी उमर निहारूँ।
भरे नहीं मन चाहे उसको,
जितनी बार दुलारूँ।
बस इतना चाहूँ मैं उस पर,
वारूँ दुनिया सारी।
करूँ प्रतीक्षा मेरी बिटिया,
पापा कब बोलेगी।
झमझम करती गुड़िया रानी,
घर-अँगना डोलेगी।
महक रही है पा कर उसको,
जीवन की फुलवारी।
बड़े भाग हैं मेरे मैंने,
नन्हीं बिटिया पायी।
कभी ख़त्म ना हो अपने सँग,
ढेरों खुशियाँ लायी।
जिस घर बिटिया उस घर हरपल,
रहती है उजियारी।