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शामियाना माँ का आँचल / संजीव 'शशि'

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कड़ी धूप में छाँव नेह की,
देता है हर पल।
शामियाना माँ का आँचल॥

भुला दिया अस्तित्व स्वयं का,
वह अपने बच्चों में खोयी।
बच्चों के सुख में सुख पाये,
बच्चों के दुख में वह रोयी।
माँ के आँसू की बूँदें भी,
लगतीं गंगा जल।

बच्चे कुछ भी करलें फिर भी,
माँ कब बच्चों से मुँह फेरे।
कैसी भी विपदा आये पर,
वह बैठी बच्चों को घेरे।
ढक लेती अपने बच्चों को,
वह बनकर बादल।

माँ के चरणों को छूते ही,
कर आये हम तीरथ सारे।
माँ के आँचल में सदियों से,
बहते हैं ममत्व के धारे।
फूलों से भी बढ़कर लगता,
माँ का मन कोमल।