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सात वचन / संजीव 'शशि'

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कर अग्नि साक्षी सात वचन,
जब हम दोनों ने दोहराये।
तुमको स्वछंद मिला जीवन,
क्यों मैंने ही बंधन पाये॥

तुमने मन चाहे काम किये,
तुमको सारे अधिकार मिले।
मेरी इच्छाओं को पग-पग,
मर्यादा के उपहार मिले।
मेरे नयनों के स्वप्न विवश,
क्यों नयनों में ही मुरझाये॥

पैरों पहने बिछिया पायल,
माथे बिंदिया, हाथों कंगन।
यह सारे चिह्न सुहागन के,
पर पूछ रहा है मेरा मन।
क्यों तुमको कोई चिह्न नहीं,
कोई तो मुझको बतलाये॥

हर बार क्षमा पायी तुमने,
मेरे अक्षम्य हैं कृत्य सभी।
मुझमें ढूँढी सीता तुमने,
क्या तुम बन पाये राम कभी।
क्यों अग्नि परीक्षा हर युग में,
नारी के हिस्से में आये॥