भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चूनर तारों वाली / संजीव 'शशि'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 7 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव 'शशि' |अनुवादक= |संग्रह=राज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिटिया ने बोला था पापा,
लाना चूनर तारों वाली।
नहीं काम मिल पाया फिर से,
कैसे घर लौटूँ मैं खाली॥

ऊँची-ऊँची ये मीनारें।
झिलमिल करतीं ये बाजारें।
महँगे कपड़े, महँगे गहने।
सरपट दौड़ रही हैं कारें।
जिसकी जेब भरी नोटों से,
उसकी तो हर रात दिवाली।

कितने सारे स्वप्न ओढ़कर।
शहर आ गया गाँव छोड़कर।
किसे पता था निर्मम सपने।
रख देंगे इस तरह तोड़कर।
अब तो लगने लगी पूर्णिमा,
जैसे मावस काली-काली।

बिटिया बोली ओ पापा सुन
आएँगे अपने अच्छे दिन।
बस तुम मुझको गले लगालो,
रह लूँगी मैं चूनर के बिन।
तुम्हें देखकर लगता पापा,
पल में पूरी दुनिया पाली।