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बेहद पसन्द है मुझे / बाद्लेयर / कविता कृष्णपल्लवी

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बेइन्तहा पसन्द है मुझे
आती हुई रात के
झीने कुहासे को,
दरीचों को और सितारों को,
एक-एक करके आसमान में रौशन होते हुए देखना, और
गाढ़े धुएँ की नदियों को ऊपर की ओर
सुस्ती से बहते हुए देखना ।

और फिर चाँद उगता है और उन्हें
चाँदी की रंगत दे देता है ।

मैं देखूँगा बहारों,
गर्मियों और
पतझड़ों को गुज़रते हुए आहिस्ता-आहिस्ता,

और जब बूढ़ी सर्दी शीशे से
अपना सूना चेहरा सटा देगी,
तो मैं सभी दरवाज़ों-खिड़कियों को बन्द कर लूँगा,
परदों को खींचकर नीचे गिरा दूँगा
और मोमबत्ती की रोशनी से अपने
राजसी महलों की तामीर करूँगा।