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प्रश्न / संजीव 'शशि'

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मैं प्रश्न पूछती रही मगर,
सब पत्थर क्या देते उत्तर।
किसको देखूँ पीछे मुड़कर।।

कुछ प्रश्न किये माँ-बापू से,
कहते हो मुझे परायी क्यों ?
बेटे को सब कुछ दिया किंतु,
है मेरे भाग्य विदाई क्यों ?
जब मैं डोली में बैठ चली,
क्यों रोका नहीं मुझे बढ़कर ?

कुछ प्रश्न किये ससुराल पहुँच,
क्यों कहें पराये घर से मैं?
कब कौन कहाँ पर ठुकरा दे,
सहमी रहती इस डर से मैं।
क्यों वस्तु सरीखा जान मुझे,
अधिकार समझते सब मुझपर ?

बोलें समाज के रखवाले,
पग-पग पर मिले उपेक्षा क्यों ?
हर नियम निभाने की आखिर,
मुझसे ही रहे अपेक्षा क्यों ?
देवी का उद्वोधन देकर,
क्यों जीवन पशुओं से बदतर ?