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बेटा या बेटी / संजीव 'शशि'
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चाहे वृद्धाश्रम पहुँचाये,
या मारें ठोकर।
फिर भी तो लगते हैं बेटे,
बेटी से बढ़कर।।
जिनको जननी बनना उनका,
जन्म नहीं आसान।
अपनों की करनी से माँ की,
कोख बनी शमशान।
कितनी रहीं अजन्मी बेटी,
बेटों की खातिर।
बेटी को पग-पग पर बंधन,
बेटे हैं स्वछंद।
बेटी के तो सपनों पर भी,
अपनों का प्रतिबंध।
दो कुल की मर्यादा इनको,
ढोनी जीवन भर।
बेटा कुलदीपक तो बेटी,
दो कुल की उजियारी।
करें प्रणाम इन्हीं में तो है,
सृष्टि समाहित सारी।
यदि विश्वास करें तो बेटी,
छू लेगी अम्बर।