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बेटी माँग रही उत्तर / संजीव 'शशि'

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नैतिकता के पाठ सभी क्यों,
लागू हैं मुझपर ?
बेटी माँग रही उत्तर।।

कहाँ मौन रहना है मुझको,
कहाँ बोलना है।
सिखलाया आँखें नीची कर,
मुझको चलना है।
फिर क्यों भूखी आँखें अक्सर,
टिक जाती आकर?

कहाँ सुरक्षित हूँ मैं आखिर,
माँ इतना बतला।
जंगल जैसे इस समाज में,
तू रहना सिखला।
पग-पग फिरें भेड़िये, कैसे
मैं निकलूँ बाहर?

अग्निपरीक्षा अब भी जारी,
दाँव लगी नारी।
कभी जानकी, कभी द्रौपदी,
नारी ही हारी।
वही वेदना कलियुग, सतयुग,
त्रेता या द्वापर।